ग़म सीं अहल-ए-बैत के जी तो तिरा कुढ़ता नहीं By Sher << हो गए हैं पैर सारे तिफ़्ल... ग़म से हम सूख जब हुए लकड़... >> ग़म सीं अहल-ए-बैत के जी तो तिरा कुढ़ता नहीं यूँ अबस पढ़ता फिरा जो मर्सिया तो क्या हुआ Share on: