ग़म्ज़ा भी हो सफ़्फ़ाक निगाहें भी हों ख़ूँ-रेज़ By Sher << ग़श खा के 'दाग़' ... फ़सुर्दा-दिल कभी ख़ल्वत न... >> ग़म्ज़ा भी हो सफ़्फ़ाक निगाहें भी हों ख़ूँ-रेज़ तलवार के बाँधे से तो क़ातिल नहीं होता Share on: