गर समझते वो कभी मअनी-ए-मत्न-ए-क़ुरआँ By Sher << ख़ुम में सुबू में जाम में... ज़ब्त कीजे तो दिल है अँगा... >> गर समझते वो कभी मअनी-ए-मत्न-ए-क़ुरआँ चेहरे शर्राह के हरगिज़ न किताबी होते Share on: