ग़ुंचे नीं इस बहार में कडवाया अपना दिल By बसंत, Sher << गर शाख़-ए-ज़ाफ़राँ उसे कह... तेरी चाहत है ख़्वाब-ए-पाक... >> ग़ुंचे नीं इस बहार में कडवाया अपना दिल बुलबुल चमन में फूल के गाई बसंत रुत Share on: