गवाही कैसे टूटती मुआमला ख़ुदा का था By Sher << हम भी इक शाम बहुत उलझे हु... नहीं दैर ओ हरम से काम हम ... >> गवाही कैसे टूटती मुआमला ख़ुदा का था मिरा और उस का राब्ता तो हाथ और दुआ का था Share on: