इक ख़याल-ओ-ख़्वाब है ए 'शोर' ये बज़्म-ए-जहाँ By Sher << ज़िंदगी उस ने बदल कर मिरी... अब तेरी दाद न फ़रियाद किय... >> इक ख़याल-ओ-ख़्वाब है ए 'शोर' ये बज़्म-ए-जहाँ यार और जाम-ओ-सुबू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं Share on: