ग़म-ए-जानाँ से रब्त टूट गया By Sher << यारो शब-ए-फ़िराक़ मैं रोय... ये सर्द रात ये आवारगी ये ... >> ग़म-ए-जानाँ से रब्त टूट गया अब ग़म-ए-दहर से पनाह नहीं Share on: