घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ By Sher << ये कौन आने जाने लगा उस गल... यूँ तो वो हर किसी से मिलत... >> घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है Share on: