घाट पर तलवार के नहलाईयो मय्यत मिरी By Sher << गुलगश्त-ए-बाग़ को जो गया ... गर्दिश में साथ उन आँखों क... >> घाट पर तलवार के नहलाईयो मय्यत मिरी कुश्ता-ए-अबरू हूँ मैं क्या ग़ुस्ल-ख़ाना चाहिए Share on: