घटाएँ खुल के बरसीं थीं चढ़े थे दिल के दरिया भी By Sher << किस से करूँ मैं अपनी तबाह... बात का ख़ून क्यों करें ना... >> घटाएँ खुल के बरसीं थीं चढ़े थे दिल के दरिया भी चढ़े दरियाओं का इक दिन उतरना भी ज़रूरी था Share on: