जिस क़दर महमेज़ करता हूँ मैं 'साजिद' वक़्त को By Sher << बाग़ में जाने के आदाब हुआ... साल गुज़र जाता है सारा >> जिस क़दर महमेज़ करता हूँ मैं 'साजिद' वक़्त को उस क़दर बे-सब्र रहने की उसे आदत नहीं Share on: