घुप-अँधेरे में भी उस का जिस्म था चाँदी का शहर By Sher << वो ताज़ा दास्ताँ हूँ मरने... मैं चाहता हूँ मुझे मशअलों... >> घुप-अँधेरे में भी उस का जिस्म था चाँदी का शहर चाँद जब निकला तो वो सोना नज़र आया मुझे Share on: