गुलों को तोड़ते हैं सूँघते हैं फेंक देते हैं By Sher << आँखों ने बनाई थी कोई ख़्व... ग़म का सूरज तो डूबता ही न... >> गुलों को तोड़ते हैं सूँघते हैं फेंक देते हैं ज़ियादा भी नुमाइश हुस्न की अच्छी नहीं होती Share on: