है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती न बयाबाँ By Sher << पाकी-ए-दामान-ए-गुल की खा ... तू चले साथ तो आहट भी न आए... >> है ता-हद्द-ए-इम्काँ कोई बस्ती न बयाबाँ आँखों में कोई ख़्वाब दिखाई नहीं देता Share on: