हैं घर की मुहाफ़िज़ मिरी दहकी हुई आँखें By Sher << अब यूँ ही देखता हूँ रस्ता देखना ही जो शर्त ठहरी है >> हैं घर की मुहाफ़िज़ मिरी दहकी हुई आँखें मैं ताक़ में रख आया हूँ जलती हुई आँखें Share on: