हैं वही इंसाँ उठाते रंज जो होते ही कज By Sher << तू ने तो अपने दर से मुझ क... गर ज़िंदगी में मिल गए फिर... >> हैं वही इंसाँ उठाते रंज जो होते ही कज टेढ़ी हो कर डूबती है नाव अक्सर आब में Share on: