हज़ार तरह के थे रंज पिछले मौसम में By Sher << नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घ... कौन से ज़ख़्म का खुला टाँ... >> हज़ार तरह के थे रंज पिछले मौसम में पर इतना था कि कोई साथ रोने वाला था Share on: