हम भी किसी कमान से निकले थे तीर से By Sher << गालियाँ ज़ख़्म-ए-कुहन को ... 'सैफ़' अंदाज़-ए-ब... >> हम भी किसी कमान से निकले थे तीर से ये और बात है कि निशाने ख़ता हुए Share on: