हम इब्तिदा ही में पहुँचे थे इंतिहा को कभी By Sher << तेरी क़ुर्बत में ये परदेस... हमीं ने ज़ीस्त के हर रूप ... >> हम इब्तिदा ही में पहुँचे थे इंतिहा को कभी अब इंतिहा में भी हैं इब्तिदा से लिपटे हुए Share on: