हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं By Sher << आज मेरी इक ग़ज़ल ने उस के... बदन की आग को कहते हैं लोग... >> हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं यूँ हँस हँस कर फ़रमाते हैं क्यूँ मर्द का नाम डुबोता है Share on: