हम उस कूचे में उठने के लिए बैठे हैं मुद्दत से By Sher << लैला ओ मजनूँ की लाखों गरच... कभी जो ख़्वाब था वो पा लि... >> हम उस कूचे में उठने के लिए बैठे हैं मुद्दत से मगर कुछ कुछ सहारा है अभी बे-दस्त-ओ-पाई का Share on: