हमारे काबा-ए-दिल में बुतों की याद बस्ती है By Sher << तुम मिरे पास होते हो गोया मंसब न कुलाह चाहता हूँ >> हमारे काबा-ए-दिल में बुतों की याद बस्ती है बड़ा अंधेर है घर में ख़ुदा के बुत-परस्ती है Share on: