हमारे तन पे कोई क़ीमती क़बा न सही By Sher << किसी के जिस्म-ओ-जाँ छलनी ... अभी से कैसे कहूँ तुम को ब... >> हमारे तन पे कोई क़ीमती क़बा न सही ग़ज़ल को अपनी मगर ख़ुश-लिबास रखते हैं Share on: