हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं By Sher << क़रीब-ए-नज़'अ भी क्यू... मिरे मरने का ग़म तो बे-सब... >> हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में Share on: