हर गली कूचा उक़ाबों का जहाँ By Sher << गालियाँ ग़ैर से सुनाते हो ज़रा ये धूप ढल जाए तो उन ... >> हर गली कूचा उक़ाबों का जहाँ ज़ख़्मी बस्ती को कबूतर चाहिए Share on: