हर तरफ़ ख़ूनीं भँवर हर सम्त चीख़ों के अज़ाब By Sher << बरहमन शैख़ को कर दे निगाह... बदल लिया है ज़रा ख़्वाब क... >> हर तरफ़ ख़ूनीं भँवर हर सम्त चीख़ों के अज़ाब मौज-ए-गुल भी अब के दोज़ख़ की हवा से कम न थी Share on: