हवस की धूप में फैला है शोर-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा By Sher << हम तिरे शहर से मिलते हैं ... इक रिवायत है जो सदियों से... >> हवस की धूप में फैला है शोर-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा सुना किसी ने नहीं बस्तियों में गिर्या-ए-ख़ाक Share on: