हो कोई मौज-ए-तूफ़ाँ या हवा-ए-तुंद का झोंका By Sher << हम जो लुटे उस शहर में जा ... गुलों का ज़िक्र बहारों मे... >> हो कोई मौज-ए-तूफ़ाँ या हवा-ए-तुंद का झोंका जो पहुँचा दे लब-ए-साहिल उसी को नाख़ुदा समझो Share on: