हम उस के जब्र का क़िस्सा तमाम चाहते हैं By Sher << बोझ दिल पर है नदामत का तो... कहते कहते कुछ बदल देता है... >> हम उस के जब्र का क़िस्सा तमाम चाहते हैं और उस की तेग़ हमारा ज़वाल चाहती है Share on: