इक मुलाक़ात का जादू कि उतरता ही नहीं By Sher << रोज़ बस्ते हैं कई शहर नए इक वही शख़्स मुझ को याद र... >> इक मुलाक़ात का जादू कि उतरता ही नहीं तिरी ख़ुशबू मिरी चादर से नहीं जाती है Share on: