वही कैफ़िय्यत-ए-चश्म-ओ-दिल-ओ-जाँ है 'इक़बाल' By Sher << आहट भी अगर की तो तह-ए-ज़ा... जो कहता था ज़मीं को मैं स... >> वही कैफ़िय्यत-ए-चश्म-ओ-दिल-ओ-जाँ है 'इक़बाल' न कोई रब्त बना और न रिश्ता टूटा Share on: