इस भरोसे पे कर रहा हूँ गुनाह By Sher << मुँह तिरा देखे जो सोते जा... इन दिनों शहर से जी सख़्त ... >> इस भरोसे पे कर रहा हूँ गुनाह बख़्श देना तो तेरी फ़ितरत है i keep on sinning as i do believe it is your nature to grant reprieve Share on: