इस तरफ़ रुख़ तिरी रहमत का जो देखा दम-ए-हश्र By Sher << न वो आएँ कि राहत हो न मौत... इस रंग से अपने घर न जाना >> इस तरफ़ रुख़ तिरी रहमत का जो देखा दम-ए-हश्र मिल गए दौड़ के ज़ाहिद भी गुनहगारों में Share on: