इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं By Sher << उस मुसाफ़िर की नक़ाहत का ... सुनते हैं बयाबाँ भी कभी श... >> इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं Share on: