जाने किस उम्मीद पे छोड़ आए थे घर-बार लोग By Sher << इश्क़ दोनों तरफ़ सूँ होता... क्या करूँगा ले के वाइज़ ह... >> जाने किस उम्मीद पे छोड़ आए थे घर-बार लोग नफ़रतों की शाम याद आए पुराने यार लोग Share on: