जब अपनी सर-ज़मीन ने मुझ को न दी पनाह By हिजरत, Sher << ख़्वाब ता'बीर कर के द... दे हौसले की दाद कि हम तेर... >> जब अपनी सर-ज़मीन ने मुझ को न दी पनाह अंजान वादियों में उतरना पड़ा मुझे Share on: