जब भी ग़ैरों की इनायत देखी By Sher << फोड़ दूँ कम-बख़्त आईने की... इतनी तो मुझ को सैर-ए-चमन ... >> जब भी ग़ैरों की इनायत देखी हम को अपनों के सितम याद आए the kindheartedness of others when i see the cruelty of kith and kin come to memory Share on: