जब भी उस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की हवा आती है By Sher << जो है ताज़गी मिरी ज़ात मे... इज़हार पे भारी है ख़मोशी ... >> जब भी उस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की हवा आती है हम तो ख़ुशबू की तरह घर से निकल जाते हैं Share on: