जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया By Sher << बाक़ी रहा न फ़र्क़ ज़मीन ... जो रंग-ए-इश्क़ से फ़ारिग़... >> जबीं-ए-संग पे लिक्खा मिरा फ़साना गया मैं रहगुज़र था मुझे रौंद कर ज़माना गया Share on: