'जलील' इक शेर भी ख़ाली न पाया दर्द ओ हसरत से By Sher << नींद आँख में भरी है कहाँ ... दिल्ली पे रोना आता है करत... >> 'जलील' इक शेर भी ख़ाली न पाया दर्द ओ हसरत से ग़ज़ल-ख़्वानी नहीं ये दर-हक़ीक़त नौहा-ख़्वानी है Share on: