ख़त्म होने को हैं अश्कों के ज़ख़ीरे भी 'जमाल' By Sher << ख़ल्वत-सरा-ए-यार में पहुँ... दर-ओ-दीवार इतने अजनबी क्य... >> ख़त्म होने को हैं अश्कों के ज़ख़ीरे भी 'जमाल' रोए कब तक कोई इस शहर की वीरानी पर Share on: