थकन बहुत थी मगर साया-ए-शजर में 'जमाल' By शजर, Sher << दरख़्त करते नहीं इस लिए उ... गर्मी-ए-इश्क़ खिला देती ह... >> थकन बहुत थी मगर साया-ए-शजर में 'जमाल' मैं बैठता तो मिरा हम-सफ़र चला जाता Share on: