ज़माना भी मुझ से ना-मुवाफ़िक़ मैं आप भी दुश्मन-ए-सलामत By Sher << ज़मीं रोई हमारे हाल पर और... ज़ालिम की तो आदत है सताता... >> ज़माना भी मुझ से ना-मुवाफ़िक़ मैं आप भी दुश्मन-ए-सलामत तअज्जुब इस का है बोझ क्यूँकर मैं ज़िंदगी का उठा रहा हूँ Share on: