ज़माने से निराला है उरूस-ए-फ़िक्र का जौबन By Sher << कुछ हँसी खेल सँभलना ग़म-ए... तेज़ी से बीतते हुए लम्हों... >> ज़माने से निराला है उरूस-ए-फ़िक्र का जौबन जवाँ होती है ऐ 'तस्लीम' जब ये पीर होती है Share on: