ज़ुल्मत ओ नूर में कुछ भी न मोहब्बत को मिला By Sher << घटती है शब-ए-वस्ल तो कहता... मिरा दिल बार-ए-इश्क़ ऐसा ... >> ज़ुल्मत ओ नूर में कुछ भी न मोहब्बत को मिला आज तक एक धुँदलके का समाँ है कि जो था Share on: