ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा By Sher << मैं दैर ओ हरम हो के तिरे ... हुस्न आफ़त नहीं तो फिर क्... >> ज़ुल्म सहना भी तो ज़ालिम की हिमायत ठहरा ख़ामुशी भी तो हुई पुश्त-पनाही की तरह Share on: