मज़ा तो जब है उदासी की शाम हो 'शाहीं' By Sher << है ख़ुशी अपनी वही जो कुछ ... ख़त-ए-शौक़ को पढ़ के क़ास... >> मज़ा तो जब है उदासी की शाम हो 'शाहीं' और उस के बीच से शाम-ए-तरब निकल आए Share on: