ज़वाल-ए-अस्र है कूफ़े में और गदागर हैं By Sher << तुम मोहब्बत को खेल कहते ह... तमाम शबनम-ओ-गुल है वो सर ... >> ज़वाल-ए-अस्र है कूफ़े में और गदागर हैं खुला नहीं कोई दर बाब-ए-इल्तिजा के सिवा Share on: