जिस से दो रोज़ भी खुल कर न मुलाक़ात हुई By Sher << इस क़दर की सर्फ़ तस्ख़ीर-... पाऊँ तो इन हसीनों का मुँह... >> जिस से दो रोज़ भी खुल कर न मुलाक़ात हुई मुद्दतों ब'अद मिले भी तो गिला कैसे हो Share on: