जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा By बेक़रारी, Sher << जो दिल में थी निगाह सी नि... जिस की जानिब 'अदा'... >> जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-क़रार कहाँ रहा Share on: